नामुमकिन

अचानक क्या हो गयाथा सब लोगोंको;
दिल में भराथा ख़ामोशी, बस देख रहे थे सब रब को…
नजरे मिलाने को नाराज थे बस सब कोई;
और ना रहा रुशवा बस भरीथी तन्हाई…

जमाना तो कुछ भी कहेगा, पर क्या अटक जाओगे तुम;
बेदर्द सी ये जिंदगानी को क्या ना सुधरोगे तुम ?
मौका तो मिलाथा तुम्हे, पर गवाया है तुमने;
मान भी जाओ यारों क्या खो दिया है तुमने ..

कशमकश से जुझके कुछ तो मिलाथा कम से कम;
अब ना रहेगा वो जिंदगी क्या फिरसे कमा पाएंगे हम..
सब तो खामोश थे ही, अब तुम भी खामोश रहो;
क्या भी करपाओगे तुम, ये सोचके बस चुप खड़े रहो..

पका मुसिबत था ये, और ना था ये शौक़ीन;
मिटने का नामोनिशान नहीं था, लग रहा था नामुमकिन..
गुमशुदा सा हो गया था जिंदगी, जैसे हुआ हो झण्ड;
जैसे चीजें बरबाद होती हे, होके भंडार में बंद…

सरहद के उस पार खड़ा है दुश्मन,आने नहीं देना है;
सरफ़रोशी की तमन्नाह दिल में अपना जगाना हे..
कदम तेरा मिटा देंगे,आके तो दिखा इस बार ;
अगर ज़ालिम हे भी तू, तो देख तेरा बाप खड़ा है इस पार…

Written By:-
~Akash Kumar Champatiray